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द्रव

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द्रव का कोई निश्चित आकार नहीं होता। द्रव जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है।

प्रकृति में सभी रासायनिक पदार्थ साधारणत: ठोस, द्रव और गैस तथा प्लाज्मा - इन चार अवस्थाओं में पाए जाते हैं। द्रव और गैस प्रवाहित हो सकते हैं, किंतु ठोस प्रवाहित नहीं होता। लचीले ठोस पदार्थों में आयतन अथवा आकार को विकृत करने से प्रतिबल उत्पन्न होता है। अल्प विकृतियों के लिए विकृति और प्रतिबल परस्पर समानुपाती होते हैं। इस गुण के कारण लचीले ठोस एक निश्चित मान तक के बाहरी बलों को सँभालने की क्षमता रखते हैं।

प्रवाह का गुण होने के कारण द्रवों और गैसों को तरल पदार्थ (fluid) कहा जाता है। ये पदार्थ कर्तन (shear) बलों को सँभालने में अक्षम होते हैं और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण प्रवाहित होकर जिस बरतन में रखे रहते हैं, उसी का आकार धारण कर लेते हैं। ठोस और तरल का यांत्रिक भेद बहुत स्पष्ट नहीं है। बहुत से पदार्थ, विशेषत: उच्च कोटि के बहुलक (polymer) के यांत्रिक गुण, श्यान तरल (viscous fluid) और लचीले ठोस के गुणों के मध्यवर्ती होते हैं।

प्रत्येक पदार्थ के लिए एक ऐसा क्रांतिक ताप (critical temperature) पाया जाता है, जिससे अधिक होने पर पदार्थ केवल तरल अवस्था में रह सकता है। क्रांतिक ताप पर पदार्थ की द्रव और गैस अवस्था में विशेष अंतर नहीं रह जाता। इससे नीचे के प्रत्येक ताप पर द्रव के साथ उसका कुछ वाष्प भी उपस्थित रहता है और इस वाष्प का कुछ निश्चित दबाव भी होता है। इस दबाव को वाष्प दबाव कहते हैं। प्रत्येक ताप पर वाष्प दबाव का अधिकतम मान निश्चित होता है। इस अधिकतम दबाव को संपृक्त-वाष्प-दबाव के बराबर अथवा उससे अधिक हो, तो द्रव स्थायी रहता है। यदि ऊपरी दबाव द्रव के संपृक्तवाष्प-दबाव से कम हो, तो द्रव अस्थायी होता है।

संपृक्त-वाष्प-दबाव ताप के बढ़ने से बढ़ता है। जिस ताप पर द्रव का संपृक्त-वाष्प-दबाव बाहरी वातावरण के दबाव के बराबर हो जाता है, उसपर द्रव बहुत तेजी से वाष्पित होने लगता है। इस ताप को द्रव का क्वथनांक (boiling point) कहते हैं। यदि बाहरी दबाव सर्वथा स्थायी हो तो क्वथनांक से नीचे द्रव स्थायी रहता है। क्वथनांक पर पहुँचने पर यह खौलने लगता है। इस दशा में यह ताप का शोषण करके द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है। क्वथनांक पर द्रव के इकाई द्रव्यमान को द्रव से पूर्णत: गैस में परिवर्तित करने के लिए जितने कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे द्रव के वाष्पीभवन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। विभिन्न द्रव पदार्थों के लिए इसका मान भिन्न होता है।

एक नियत दबाव पर ठोस और द्रव दोनों रूप साथ साथ एक निश्चित ताप पर पाए जा सकते हैं। यह ताप द्रव का हिमबिंदु या ठोस का द्रवणांक कहलाता है। द्रवणांक पर पदार्थ के इकाई द्रव्यमान को ठोस से पूर्णत: द्रव में परिवर्तित करने में जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे ठोस के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। अक्रिस्टली पदार्थों के लिए कोई नियत गलनांक नहीं पाया जाता। वे गरम करने पर धीरे धीरे मुलायम होते जाते हैं और फिर द्रव अवस्था में आ जाते हैं। काँच तथा काँच जैसे अन्य पदार्थ इसी प्रकार का व्यवहार करते हैं।

एक नियत ताप और नियत दबाव पर प्रत्येक द्रव्य की तीनों अवस्थाएँ एक साथ विद्यमान रह सकती हैं। दबाव और ताप के बीच खीचें गए आरेख (diagram) में ये नियत ताप और दबाव एक बिंदु द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। इस बिंदु को द्रव का त्रिक् बिंदु (triple point) कहते हैं। त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दाबों पर द्रव अस्थायी रहता है। यदि किसी ठोस को त्रिक् विंदु की अपेक्षा निम्न दबाव पर रखकर गरम किया जाए तो वह बिना द्रव बने ही वाष्प में परिवर्तित हो जाता है, अर्थात् ऊर्ध्वपातित (sublime) हो जाता है।

द्रव के मुक्त तल में, जो उस द्रव के वाष्प या सामान्य वायु के संपर्क में रहता है, एक विशेष गुण पाया जाता है, जिसके कारण यह तल तनी हुई महीन झिल्ली जैसा व्यवहार करता है। इस गुण को पृष्ठ तनाव (surface tension) कहते हैं। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव के पृष्ठ का क्षेत्रफल यथासंभव न्यूनतम होता है। किसी दिए आयतन के लिए सबसे कम क्षेत्रफल एक गोले का होता है। अत: ऐसी स्थितियों में जब कि बाहरी बल नगण्य माने जा सकते हों द्रव की बूँदे गोल होती हैं। जब कोई द्रव किसी ठोस, या अन्य किसी अमिश्रय द्रव, के संपर्क में आता है तो भी संपर्क तल पर तनाव उत्पन्न होता है।

साधारणत: कोई भी पदार्थ केवल एक ही प्रकार के द्रव रूप में प्राप्त होता है, किंतु इसके कुछ अपवाद भी मिलते हैं, जैसे हीलियम गैस को द्रवित करके दो प्रकार के हीलियम द्रव प्राप्त किए जा सकते हैं। उसी प्रकार पैरा-ऐज़ॉक्सी-ऐनिसोल (Para-azoxy-anisole) प्रकाशत: विषमदैशिक (anisotropic) द्रव के रूप में, क्रिस्टलीय अवस्था में तथा सामान्य द्रव के रूप में भी प्राप्त हो सकता है।

द्रव की आण्विक रचना

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प्रत्येक द्रव्य के अणु एक दूसरे को आकर्षित किए रहते हैं। इस आकर्षण को अंतराणुक आकर्षण कहते हैं। इसी के कारण किसी द्रव्य के अणु एकत्र रहते हैं। द्रव्य के अणुओं पर एक विकर्षण बल भी लगता रहता है। यह बल अणुओं को एक दूसरे के अति निकट आने से रोकता है। ठोस के अणुओं के बीच ये बल प्रबल होते हैं। द्रवों में इनके मान अल्प और गैसों में लगभग नगण्य होते हैं।

क्रिस्टलीय ठोस की लाक्षणिक विशेषता यह होती है कि उसमें निकट परास (short range) और दूर परास (long range) में भी अणुओं की एक सुनियोजित व्यवस्था बनी होती है। कुछ अणु आपस में मिलकर छोटे छोटे गुट बना लेते हैं। इन गुटों की आंतरिक रचना एक सी होती है। इन्हें एकककोशिका (unit cell) कहते हैं। यही निकट परास की व्यवस्था कहलाती है। दूर परास की व्यवस्था का यह अर्थ है कि क्रिस्टलीय ठोस की एकककोशिकाएँ भी विशेष ढंग से व्यवस्थित रहती हैं, अर्थात् एकककोशिका की व्यवस्था मनमानी (random) नहीं वरन् आवर्ती (periodic) होती है। द्रव और ठोस में मुख्य भेद यही है कि द्रव में दूरपरास व्यवस्था बिल्कुल नहीं होती है। निकटपरास व्यवस्था कुछ हद तक बनी रह सकती है, जिससे द्रव में भी प्रत्येक अणु के चारों ओर स्थित अणुओं की संख्या बराबर होती है।

एक्स-किरण विवर्तन (x-ray differaction) के प्रयोगों द्वारा इस प्रकार की निकट परास व्यवस्था की उपस्थिति वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित की जा चुकी है। जे.डी. बरनाल (J.D. Bernal) और आर.एच. फाउलर (R.H. Fowler) ने एक्स-किरण विवर्तन का अध्ययन किया है और उसकी संख्या का फूर्ये (Fourier) विश्लेषण करके इस तथ्य को प्रतिपादित किया है।

द्रव के ऊष्मागतिक और यांत्रिक गुण

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द्रव के क्रांतिक विंदु, श्यानता तथा अन्य गुणों की गणना के लिए बहुत से सैद्धांतिक प्रयत्न किए गए हैं। पहले के अध्ययनों के अधिकतर लेनार्ड जोन्स विभव (Lennard Jones poetntial) का उपयोग किया गया है। द्रवों का विवर सिद्धांत (Hole Theory of Liquids) अपेक्षाकृत नवीन सिद्धांत है।

द्रवों के प्रकाशीय और विद्युतीय गुण

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बहुत से द्रव विद्युच्छुचालक हैं। इनकी चालकता का कारण यह है कि इनमें स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं। द्रव लवणों की विद्युच्चालकता उनके आयनीकरण पर निर्भर करती है। अन्य द्रव दो मुख्य भागों में बाँटे जा सकते हैं। जो द्रव विद्युन्मय वस्तु की ओर-आकर्षित होते हैं, उन्हें ध्रुवीय (polar) और जो आकर्षित नहीं होते उन्हें अध्रुवीय (non-polar) कहा जाता है। वास्तविकता यह है कि ध्रुवीय द्रवों के अणु में स्थायी रूप से कुछ द्वध्रुिव-आघूर्ण (dipole moments) होते हैं, परतु अध्रुवीय द्रवों के अणुओं में ऐसा नहीं होता। बेंजीन अध्रुवीय द्रव है। अध्रुवीय द्रवों का परावैद्युतांक (dielectric constant) १ और ३ के बीच में पाया जाता है। इनका दृश्य (visible) क्षेत्रीय वर्तनांक इनके रेडियो आवृत्तीय (radio frequency) परावैद्युतांक के वर्गमूल के बराबर होता है। ध्रुवीय द्रवों के परावैद्युतांक अध्रुवीय द्रवों के परावैद्युतांकों की अपेक्षा लगभग १० से १०० गुना अधिक होते हैं, किंतु इनका वर्तनांक (refractive index) लगभग उतना ही होता है। द्रव समान्यत: समदैशिक (isotropic) होते हैं।

द्रवों के वर्णक्रम इन्हीं पदार्थों के गैसीय आणविक वर्णक्रमों से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं। पर द्रवों के रमन (Raman) और अवरक्त (infra-red) वर्णक्रम संगत गैसीय वर्णक्रम से कुछ भिन्न होते हैं।

द्रवो में होने वाले परिर्वतन को द्रवो मेसिक के माध्यम जाना जाता हैं । जिसका उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं।

फिजिक्स में इनके प्रेशर में उपयोग कर

काटने, ऊर्जा, सौन्दर्य प्रदर्शन में किया जाता हैं।