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बायोप्लास्टिक (जैवप्लास्टिक)

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जैव अवक्रमित प्लास्टिक से बने बर्तन.

जैवप्लास्टिक, या जैविक प्लास्टिक प्लास्टिक का एक प्रकार है जिसे पेट्रोलियम से प्रात होने वाले जीवाश्म ईंधन प्लास्टिक की बजाय शाकाहारी तेल, मक्का स्टार्च[1], मटर स्टार्च या माइक्रोबायोटा[1] जैसे नवीकरणीय जैव ईंधन स्रोतों से प्राप्त किया जाता है[ कुछ (सभी नहीं) प्रकार के जैवप्लास्टिक को जैव अवक्रमण के लिए तैयार किया जाता है।

इस्तेमाल

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जैव अवक्रमित प्लास्टिक का इस्तेमाल पैकेजिंग और केटरिंग जैसी निर्वर्त्य (डिस्पोजेबल) चीजों (क्राकरी, कटलरी, बर्तन, प्याले, स्ट्रा) के लिए किया जाता है। जैव अवक्रमित जैव-प्लास्टिक का इस्तेमाल जैविक कूड़ादान बनाने के लिए भी किया जाता है जहां यह भोजन और हरे कचरे के साथ खाद में तब्दील हो जाते हैं। जैव प्लास्टिक से फलों, सब्जियों, अंडों और मांस रखने के लिए किश्ती और पात्र बनाए जाते हैं, इससे शीतल पेय और दुग्ध उत्पादों के लिए बोतलें और फलों तथा सब्जियों के लिए सख्त पर्णिका भी बनाई जाती है।

इसके पुन: प्रयोज्य इस्तेमाल में मोबाइल फोन रखने वाला, कालीन का रेशा और गाड़ी के अंदर की सजावट, इंधन पंक्ति व प्लास्टिक पाइप बनाना शामिल है और अब नए विद्युतसक्रिय जैव प्लास्टिक विकसित किए जा रहे हैं जिसका इस्तेमाल विद्युतीय धारा को प्रवाहित करने में भी किया जा सकेगा। [2] इन क्षेत्रों में लक्ष्य जैव-अवक्रमणीकरण नहीं, बल्कि स्थायी संसाधनों से चीजें बनाने का है।

प्लास्टिक के प्रकार

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स्टार्च आधारित प्लास्टिक

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प्लास्टार्च पदार्थ जैसे तापप्लास्टिक स्टार्च, जैव प्लास्टिक बाजार का लगभग 50 फीसदी हिस्सा तैयार करते हैं और फिलहाल यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और इस्तेमाल किया जाने वाला जैव प्लास्टिक है। शुद्ध स्टार्च में नमी को सोखने की विशेषता होती है और यही वजह है कि इसका इस्तेमाल औषधीय क्षेत्र में दवाओं के कैप्सूल बनाने में किया जाता है। सॉर्बिटॉल और ग्लिसरीन जैसे फ्लेक्सीबिलाइजर तथा प्लास्टिसाइजर को मिला दिया जाता है ताकि स्टार्च को ताप-प्लास्टिक रूप से प्रसंस्कृत भी किया जा सके। इन युग्मकों की मात्रा में बदलाव करके जरूरत के मुताबिक सामान की विशेषता तैयार की जाती है (जिन्हें ताप-प्लास्टिक स्टार्च भी कहा जाता है)। इस प्रक्रिया से घर पर ही सामान्य स्टार्च प्लास्टिक बनाया जा सकता है।[2]

सेलूलोज़ आधारित प्लास्टिक

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सेलुलोज़ जैव प्लास्टिक मुख्य रूप से सेलुलोज़ एस्टर्स (सेलुलोज़ एसेटेट, नाइट्रोसेलुलोज़) और उनसे व्युत्पादित (सेल्यूलॉयड...) हैं।

कुछ एलिफैटिक पॉलिएस्टर

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एलिफैटिक जैवपॉलिएस्टर मुख्य रूप से पॉली-3-हाइड्रोक्सिब्यूटाइरेट (पीएचबी), पॉलीहाइड्रोक्सिवैलेरेट (पीएचवी) और पॉलीहाइड्रोक्सिहेक्सानोट पीएचएच की तरह पॉलीहाइड्रोक्सिएल्कानोट्स (पीएचए) हैं।

पॉलीलैक्टिक एसिड (पीएलए) प्लास्टिक

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पॉलीलैक्टिक एसिड (पीएलए) एक पारदर्शी प्लास्टिक है जिसे गन्ना या शर्करा से तैयार किया जाता है। इसकी विशेषताएं न सिर्फ पारंपरिक शैलरसायन परिमाण वाले प्लास्टिक (जैसे पीई या पीपी) की तरह हैं, बल्कि बड़ी आसानी से इसका उत्पादन मानक उपकरणों से किया जा सकता है जो पहले से ही पारंपरिक प्लास्टिक के उत्पादन के लिए मौजूद हैं। पीएलए और पीएलए ब्लेंड्स आमतौर पर विभिन्न विशेषताओं के साथ दानेदार के रूप में आता है और जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग में पर्णिका, सांचा, डिब्बा, प्याली, बोतल और दूसरी चीजों को बनाने में किया जाता है।

पॉली-3-हाइड्रोक्सिब्यूटाइरेट (पीएचबी)

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जैवपॉलिमर पॉली-3-हाइड्रोक्सिब्यूटाइरेट (पीएचबी) एक तरह का पॉलिएस्टर है जो शर्करा या स्टार्च प्रसंस्कृत करने वाले विशेष तरह के जीवाणु द्वारा उत्पादित होते हैं। इसकी विशेषताएं शैलप्लास्टिक पॉलीप्रोपाइलीन के जैसा ही होता है। उदाहरण के लिए, दक्षिण अमेरिका के चीनी उद्योग ने फैसला किया कि वो पीएचबी का उत्पादन औद्योगिक स्तर पर बढ़ाएंगे. पीएचबी को मुख्य रूप से उसकी शारीरिक विशेषताओं की वजह से अलग किया जाता है। यह 130 डिग्री सेल्सियस से अधिक के पिघलने वाला केंद्र बिंदु पर पारदर्शी फिल्म का उत्पादन करता है और यह बिना अवशेष के जैव अवक्रमित होता है।

पॉलिएमाइड 11 (11 पीए)

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पीए 11 एक जैव बहुलक है जिसे प्राकृतिक तेल से प्राप्त किया जाता है। यह व्यापारिक नाम रिलसैन के नाम से भी जाना जाता है जिसका बाजारीकरण अर्केमा करती है। पीए 11 तकनीकी बहुलक परिवार से आता है और यह जैव अवक्रमित नहीं है। इसकी विशेषताएं पीए 12 के समान होती हैं, हालांकि इसके उत्पादन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और गैर-नवीकरणीय संसाधनों की खपत कम हो जाती है। इसकी ताप प्रतिरोधक क्षमता भी पीए 12 से ज्यादा होती है। इसका इस्तेमाल उच्च प्रदर्शन वाले एप्लिकेशंस, जैसे ऑटोमोटिव फ्यूल लाइंस, वायुचालित एयरब्रेक ट्यूबिंग, दीमक रोधी आवरण के लिए विद्युतीय केबल, लचीले तेल व गैस पाइप, नियंत्रित तरल नाभि रज्जु, खेल में इस्तेमाल किए जाने वाले जूते, विद्युतीय उपकरणों के घटक और नलिका में किया जाता है।

जैव-व्युत्पन्न पॉलीएथीलीन

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पॉलीएथीलीन का बुनियादी खंड एकलक एथीलीन है। रासायनिक रूप से यह एथेनॉल से केवल एक कदम पीछे है, जिसे गन्ना या मक्का जैसे कृषि उत्पादों के किण्वन से उत्पादित किया जा सकता है। रासायनिक और शारीरिक रूप से जैव-व्युत्पन्न पॉलीएथीलीन पारंपरिक पॉलीएथीलीन के समान ही होता है – यह अवक्रमण नहीं होता है लेकिन इसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। यह ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकता है। ब्राजील के रासायनिक समूह ब्रासकेम (Braskem) का दावा है कि गन्ने का प्रयोग कर एक टन पॉलीएथीलीन का उत्पादन (पर्यावरण से हटाया) करने से जहां 2.5 टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, वहीं पारंपरिक पेट्रोरासायनिक तरीके से उत्पादन करने पर 3.5 टन के आसपास उत्सर्जन होता है।

ब्रासकेम ने 2010 में अपने पहले उच्च घनत्व वाले जैव-व्युत्पन्न पॉलीएथीलीन को व्यापारिक मात्रा में उत्पादन करने की योजना बनाई, जिसका इस्तेमाल बोतल और टब जैसे पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाली चीजों में होता है, इसके लिए उसने जैव-व्युत्पन्न ब्यूटेन उत्पादन करने की तकनीक विकसित की, जिसकी जरूरत रैखिक निम्न घनत्व वाले पॉलीएथीलीन बनाने में होती है जिसका इस्तेमाल फिल्म उत्पादन में किया जाता है।[3]

आनुवांशिक रूप से संशोधित जैवप्लास्टिक

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आनुवांशिक संशोधन (जीएम) जैवप्लास्टिक उद्योग के लिए भी एक चुनौती है। पहली पीढ़ी के उत्पाद के तौर पर स्वीकार किए जाने वाले फिलहाल मौजूद किसी भी जैव प्लास्टिक को जीएम फसलों की जरूरत नहीं होती है, हालांकि मक्का एक मानक कच्चा माल है।

आगे देखें तो दूसरी पीढ़ी के जैव प्लास्टिक उत्पादन की विकसित हो रही तकनीकों में प्लांट फैक्ट्री मॉडल का प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें क्षमता बढ़ाने के लिए आनुवांशिक रूप से परिष्कृत फसलों या आनुवांशिक रूप से संशोधित जीवाणु का इस्तेमाल किया जाता है।

पर्यावरणीय प्रभाव

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आमतौर पर पेट्रोलियम से होने वाले प्लास्टिक (पेट्रोप्लास्टिक) उत्पादन की तुलना में जैव प्लास्टिक के उत्पादन और इस्तेमाल को ज्यादा टिकाऊ गतिविधि माना जाता है, क्योंकि यह कार्बन स्रोत के लिए जीवाष्म ईंधन पर कम निर्भर होता है और अगर ये अवक्रमण होता है तो शुद्ध नई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करता है। यह तेल से बनने वाले प्लास्टिक के मुकाबले खतरनाक कचरे को काफी कम करता है, जो कि सैकड़ों सालों तक ठोस रहता है और इस तरह पैक करने वाली तकनीकी और उद्योग में एक नए युग की शुरुआत हुई। [4]

हालांकि जैवप्लास्टिक सामग्रियों का उत्पादन अक्सर ऊर्जा और सामग्री के लिए पेट्रोलियम पर ही निर्भर है। खेतों में मशीन चलाने और सिंचाईं के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है, खाद और कीटनाशक के उत्पादन, प्रसंस्करण संयंत्र तक फसलों के परिवहन के लिए, कच्चे माल की प्रक्रिया के लिए और आखिर में जैव प्लास्टिक के उत्पादन के लिए जिस ऊर्जा की जरूरत होती है, वो सब पेट्रोलियम से ही हासिल होती है, वैसे नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग कर पेट्रोलियम उत्पादों के इस्तेमाल से छुटकारा पाया जा सकता है।

इतालवी जैवप्लास्टिक उत्पादक नोवामोंट (Novamont)[5] ने अपने पर्यावरणीय जांच[6] में लिखा है कि उसे स्टार्च आधारित उत्पाद का एक किलोग्राम तैयार करने के लिए 500 ग्राम पेट्रोलियम का प्रयोग किया जाता है और यह पारंपरिक पॉलीएथीलीन बहुलक उत्पादन में करीब-करीब 80 फीसदी ऊर्जा की खपत होती है। व्यापारिक तौर पर पीएलए (पॉलीलैक्टिक एसिड) का उत्पादन करने वाली एकमात्र कंपनी नेचरवर्क्स (NatureWorks)[7] के पर्यावरणीय डाटा में कहा गया है कि प्लास्टिक सामग्री बनाने में उसे पॉलीएथीलीन की तुलना में 25 से 68 फीसदी तक जीवाश्म ईंधन की बचत होती है, यह इसलिए है क्योंकि इसे अपने उत्पादन संयंत्र के लिए नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण पत्र खरीदना पड़ा है।

फ्रैंकलिन एसोसिएट्स द्वारा संचालित और द एथेना इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित विभिन्न पारंपरिक प्लास्टिक और पॉलीलैक्टिक एसिड में सामान्य पैक करने वाले सामान के उत्पादन के तरीके के गहन अध्ययन में दिखाया गया है कि जैव प्लास्टिक कुछ उत्पादों के लिए तो पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाता है, लेकिन दूसरों के लिए ये ज्यादा पर्यावरणीय नुकसानदेह है।[8] हालांकि इस अध्ययन में उत्पादों के लिए सब कुछ खत्म होना नहीं माना गया, इसलिए इसमें जैव अवक्रमित प्लास्टिक के लिए मीथेन के संभावित उत्सर्जन को नजरअंदाज कर दिया गया।

जहां पारंपरिक विकल्पों की तुलना में ज्यादातर जैव प्लास्टिक के उत्पादन में कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कम होता है, वहीं कुछ वास्तविक चिंताएं हैं जो इस बात से हैं कि अगर सही तरीके से प्रबंधन नहीं हुआ तो वैश्विक जैव अर्थव्यवस्था से जंगलों की कटाई की दर और बढ़ जाएगी. पानी की आपूर्ति और मिट्टी के क्षय की चिंताएं भी इससे जुड़ी हैं।

अन्य अध्ययनों में दिखाया गया है कि जैवप्लास्टिक से कार्बन पदचिन्ह में 42 फीसदी की कमी आई है।[9]

वहीं दूसरी तरफ, सूक्ष्म जीवों का इस्तेमाल जैव प्लास्टिक कृषि के प्रतिफल[4] के साथ-साथ इस्तेमाल की हुई प्लास्टिक की बोतलों और दूसरे पात्रों से भी तैयार किया जा सकता है।[10]

जैवप्लास्टिक और जैव अवक्रमण

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कभी-कभार जैव प्लास्टिक क्षेत्र में इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली भ्रामक लगती है। उद्योग से जुड़े ज्यादातर लोग इस शब्दावली का मतलब जैविक स्रोत से उत्पादित प्लास्टिक से लगाते हैं। सबसे पुराने प्लास्टिक में से एक, सेलूलोज़ फिल्म, लकड़ी के सेलूलोज़ से बना है। तकनीकी तौर पर सभी (जैव और पेट्रोलियम आधारित) प्लास्टिक जैव अवक्रमित होते हैं, जिसका मतलब ये है कि वे उपयुक्त परिस्थितियां मिलने पर रोगाणुओं द्वारा अवक्रमित किए जा सकते हैं। हालांकि ज्यादातर इतनी धीमी गति से अवक्रमित होते हैं कि वो गैर-जैव अवक्रमण जैसे प्रतीत होते हैं। कुछ शैल-रसायन आधारित प्लास्टिक को जैव अवअवक्रमित माना जाता है और कई व्यापारिक जैव प्लास्टिक के प्रदर्शन को उन्नत करने में इसे योज्य (एडिडिव) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।[उद्धरण चाहिए] गैर-जैव अवक्रमित जैव प्लास्टिक को टिकाऊ माना जाता है। जैव अवक्रमण की रफ्तार तापमान, पॉलीमर की स्थिरता और ऑक्सीजन की उपलब्ध मात्रा के मुताबिक बदलती रहती है। नतीजतन, ज्यादातर जैव प्लास्टिक औद्योगिक इकाइयों की वानस्पतिक खाद की ईकाई की सख्त नियंत्रित परिस्थितियों में ही अवक्रमित होते हैं। वानस्पतिक खाद के ढेर या मिट्टी/पानी में ज्यादातर जैव प्लास्टिक अवक्रमित नहीं होते हैं, हालांकि स्टार्च आधारित जैव प्लास्टिक के साथ ऐसा नहीं है।[11] एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य मानक, ईएन13432, में परिभाषित किया गया है कि कितनी जल्दी और किस हद तक वाणिज्यिक खाद की मौजूदगी में प्लास्टिक अवक्रमित होता है, जिससे कि इसे जैव अवक्रमित कहा जा सकता है। इसे अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर स्टैंडर्डाइजेशन, आईएसओ) द्वारा प्रकाशित किया गया है और पूरा यूरोप, अमेरिका और जापान समेत कई देशों में मान्यता प्राप्त है। हालांकि इसे केवल वाणिज्यिक खाद इकाइयों की आक्रामक स्थितियों के लिए बनाया गया है। वहां वानस्पतिक खाद अवस्था को रखने के लिए कोई मानक लागू नहीं है।

विशेषकर प्रसंस्कृत शैल-रसायन आधारित प्लास्टिक के उत्पादकों द्वारा भी अक्सर 'जैव अवक्रमित प्लास्टिक' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है जो कि अवक्रमित होता दिखता है।[उद्धरण चाहिए] पॉलीएथीलीन जैसे पारंपरिक प्लास्टिक ऑक्सीजन और परा-बैंगनी (यूवी) किरणों से अवक्रमित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को रोकने के लिए निर्माता स्थिर करने वाले रसायनों का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि प्लास्टिक के साथ अवक्रमण को प्रेरित करने वाले को जोड़ दिए जाने से नियंत्रित परा-बैंगनी/ऑक्सीकरण विघटन प्रक्रिया संभव हो सकती है। इस प्रकार के प्लास्टिक को अवक्रमणयुक्त प्लास्टिक या ऑक्सीअवक्रमित प्लास्टिक या फोटोअवक्रमित प्लास्टिक कहा जा सकता है क्योंकि यहां माइक्रोबियल कार्रवाई से प्रक्रिया शुरू नहीं होती है। हालांकि कुछ अवक्रमणित प्लास्टिक निर्माताओं का तर्क है कि अवक्रमित प्लास्टिक अवशेषों पर रोगाणुओं द्वारा हमला किया जाएगा, ये अवक्रमित सामग्री ईएन13432 के वाणिज्यिक वानस्पतिक खाद मानक की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते.जैव प्लास्टिक उद्योग व्यापक रूप से ऑक्सी-जैव अवक्रमित प्लास्टिक की आलोचना करता है, जिसके बारे में उद्योग संघ का कहना है कि वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं। ऑक्सोस के नाम से जाने जाने वाले ऑक्सो-जैव अवक्रमित प्लास्टिक पारंपरिक पेट्रोलियम आधारित उत्पाद हैं जिसमें कुछ योज्य (एडिडिव्स) जुड़े हैं जिनसे अवक्रमण शुरू होता है। ऑक्सो निर्माताओं द्वारा जिस एएसटीएम मानक का प्रयोग किया जाता है वह सिर्फ एक दिशानिर्देश है। इसे सिर्फ 60 फीसदी जैव अवक्रमण की जरूरत होती है, पी-लाइफ एक ऑक्सो प्लास्टिक है जिसके तहत मिट्टी में 23 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 545 दिनों बाद अवक्रमण 66 फीसदी तक पहुंचने का दावा किया जाता है। नेशनल इनोवेशन एजेंसी के डॉ॰ बैलटस ने कहा कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे साबित हो कि जैव-अवयवी सचमुच में ऑक्सो प्लास्टिक की खपत और अवक्रमण करने में सक्षम है।

रीसाइक्लिंग

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वहां इस बात की भी चिंता रहती है कि जैवप्लास्टिक मौजूदा रीसाइक्लिंग परियोजनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। दूध की एचडीईपी बोतलों और पानी तथा शीतल पेय की पीईटी बोतलों जैसी पैकेजिंग की बड़ी आसानी से पहचान की जा सकती है और यही वजह है कि दुनिया के कई हिस्सों में रिसाइक्लिंग के बुनियादी ढांचे की स्थापना की धारणा कामयाब रही हैं। हालांकि, पीईटी की तरह प्लास्टिक पीएलए के साथ नहीं मिल पाता है, ऐसे में अगर ग्राहक दोनों में फर्क करने में असमर्थ हो तो इस्तेमाल नहीं होने वाला रीसाइकल्ड पीईटी मिलेगा. इस समस्या का समाधान छंटाई करने की उपयुक्त प्रौद्योगिकी पर निवेश कर विशिष्ट प्रकार की बोतल का पता लगाना सुनिश्चित किया जा सकता है। हालांकि, पहला तरीका भरोसेमंद नहीं है और दूसरा काफी महंगा.

बाजार में विखंडन और अब तक अनसुलझी परिभाषा की वजह से जैव प्लास्टिक के बाजार के कुल आकार का आंकलन करना मुश्किल है, लेकिन एक आंकलन के मुताबिक साल 2006 में दुनिया भर में इसकी करीब 85,000 टन खपत हुई थी।[उद्धरण चाहिए] इसके विपरित सभी लचकदार पैकेजिंग की खपत का आंकलन 12.3 मिलियन टन लगाया गया था।[12]

सीओपीए (यूरोपीय संघ में कृषि संगठन की समिती) और सीओजीईजीए (यूरोपीय संघ में कृषि सहकारिता की आम समिती) ने यूरोपीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए संभावित जैव प्लास्टिक का एक आंकलन किया था।

खानपान संबंधी उत्पाद: प्रति वर्ष 450,000 टन
जैविक अपशिष्ट बैग: प्रति वर्ष 100,000 टन
जैव-अवक्रमित सड़ी पन्नी: प्रति वर्ष 130,000 टन
डायपर की जैव-अवक्रमण पन्नी: प्रति वर्ष 80,000 टन
डायपर, 100% जैव-अवक्रमण: प्रति वर्ष 240,000 टन
पन्नी पैकेजिंग: प्रति वर्ष 400,000 टन
सब्जी पैकेजिंग: प्रति वर्ष 400,000 टन
टायर घटक: प्रति वर्ष 200,000 टन

प्रति वर्ष कुल 2,000,000 टन

2000 से 2008 के बीच अब तक के तीन महत्वपूर्ण कच्चे माल स्टार्च, चीनी और सेल्यूलोज पर आधारित जैव अवक्रमित प्लास्टिक की दुनियाभर में खपत 600 फीसदी बढ़ गई थी।[13] जैव प्लास्टिक कारोबारी समूह ने संभावना जताई थी कि साल 2011 तक वार्षिक क्षमता तीन गुना से भी ज्यादा बढ़कर 1.5 मिलियन तक पहुंच जाएगी. बीसीसी रिसर्च ने भविष्यवाणी की है कि वैश्विक बाजार में जैव अवक्रमित पॉलीमर्स साल 2012 तक 17 फीसदी से ज्यादा की यौगिक औसत वृद्धि दर से बढ़ेगा. फिर भी, जैव प्लास्टिक कुल प्लास्टिक बाजार का एक छोटा सा ही हिस्सा होगा, जिसके कि साल 2010 तक वैश्विक स्तर पर 500 बिलियन टन तक पहुंचने की भविष्यवाणी है।[14]

सेल्यूलोज को छोड़कर ज्यादातर जैव प्लास्टिक तकनीकी अपेक्षाकृत नई है और फिलहाल शैल-प्लास्टिक के मुकाबले कीमत में भी ज्यादा है। जैव प्लास्टिक अपने उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा पर अब तक जीवाश्म ईंधन के समान नहीं पहुंच सका है, जिससे पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के मुकाबले लागत में कमी करने का मौका नहीं मिल रहा। हालांकि, कुछ मामलों में विशेष अनुप्रयोगों वाले जैव प्लास्टिक पहले से ही अपराजेय हैं क्योंकि उनके शुद्ध माल की लागत पूरे उत्पाद की लागत का सिर्फ एक हिस्सा मात्र है। उदाहरण के तौर पर, शरीर में घुल जाने वाला पीएलए से बना चिकित्सकीय इंप्लांट्स मरीज को एक दूसरे ऑपरेशन से बचाता है। अक्सर स्टार्च से बनने वाले बहुलक कृषि के लिए कंपोस्टेबल मल्च फिल्म इस्तेमाल के बाद एकत्र नहीं किया जाता है और उसे मैदान पर ही छोड़ दिया जाता है।[15]

अनुसंधान और विकास

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  • 1950 के दशक की शुरुआत में एमाइलोमेज (>50% एमाइलोज कंटेंट कॉर्न) को सफलतापूर्वक उत्पादित किया गया था और वाणिज्यिक जैवप्लास्टिक अनुप्रयोगों की तलाशी की शुरुआत हुई थी।
  • 2004 में एनसी ने हैलोजेन और फासफोरस यौगिकों जैसे जहरीले रसायनों का इस्तेमाल किये बिना लौ प्रतिरोधक प्लास्टिक पॉलीलैक्टिक एसिड विकसित किया था।[3]
  • 2005 में फुजित्सू ऐसी पहली तकनीकी कंपनी बनी जिसने जैवप्लास्टिक से पर्सनल कंप्यूटर का बक्सा तैयार किया, जो कि उनके एफएमवी-बीआईबीएलओ एनबी80के (FMV-BIBLO NB80K) लाइन में शामिल था।
  • साल 2007 में ब्राजील के ब्रासकेम ने ऐलान किया कि उसने गन्ने से मिलने वाले एथीलिन का इस्तेमाल कर उच्च घनत्व वाला पॉलीथिन (एचडीईपी) बनाने का तरीका विकसित कर लिया है।
  • साल 2008 में वारविक विश्वविद्याल की टीम ने सोप-फ्री पॉलीमेराइजेशन तैयार किया जिससे पॉलिमर के कोलॉयड अणु पानी में घुल जाते हैं और एक कदम वाली इस प्रक्रिया में मिश्रण में नैनोमीटर आकार के सिलिका-बेस्ड अणुओं को मिलाया जाता है। बहुस्तरीय जैव-अवक्रमित पैकेजिंग में विकसित की गई इस नई तकनीक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो सकता है, नैनो-पार्टिकल कोटिंग को जोड़ने से इसमें और ज्यादा मजबूती और पानी को रोकने वाली विशेषताएं जुड़ जाएंगीं.[16]

परीक्षण प्रक्रियाएं

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अवक्रमणता - ईएन 13432, एएसटीएम डी6400

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औद्योगिक मानक ईएन 13432 संभावना और अनुपालन के मामले में सबसे ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय है जिसके साथ ये दावा किया जाता है कि ये उत्पाद यूरोपीय बाजार में वानस्पतिक खाद जैसा है। संक्षेप में कहा जाए तो इस मानक के मुताबिक एक व्यापारिक वानस्पतिक खाद इकाई में 90 फीसदी सामग्री का जैव-अवक्रमित 180 दिनों के अंदर हो जाना चाहिए। वहीं एएसटीएम 6400 मानक अमेरिका का नियामक ढांचा है और इसमें थोड़ा कम सख्त नियम है जहां व्यापारिक वानस्पतिक खाद की परिस्थितियों में 180 दिनों में 60 फीसदी जैव-अवक्रमण होना जरूरी है।

स्टार्च आधारित बहुत सारे प्लास्टिक, पीएलए आधारित प्लास्टिक और सक्सीनेट्स और एडिपेट्स जैसे कुछ एलिफैटिक-एरोमैटिक को-पॉलिएस्टर ने ये प्रमाणपत्र हासिल कर लिया है। फोटोअवक्रमित या ऑक्सो जैव अवक्रमित के तौर पर बेचे जाने वाले योज्य प्लास्टिक अपने वर्तमान रूप में इन मानकों का पालन नहीं करते हैं।

जैवआधारित - एएसटीएम डी6866

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एएसटीएम डी6866 प्रक्रिया को जैवीय तौर पर प्राप्त जैवप्लास्टिक सामग्री को प्रमाणित करने के लिए ही विकसित किया गया है। ब्रह्मांडीय किरणों का वातावरण के साथ टकराने का मतलब है कि कुछ कार्बन रेडियोधर्मी समस्थानिक कार्बन-14 हैं। पेड़-पौधे वातावरण में मौजूद CO2 का इस्तेमाल प्रकाश संश्लेषन में इस्तेमाल करते हैं, इसलिए नए पौधे की सामग्री में कार्बन-14 और कार्बन-12 दोनों मौजूद होंगे। सही परिस्थितियों और भूवैज्ञानिक समयमापक्रम के तहत जीवों के अवशेष जीवाश्म ईंधन के रूप में तब्दील किया जा सकता है। एक लाख सालों के बाद मूल जैव सामग्री में मौजूद सभी कार्बन-14 का रेडियोधर्मी क्षय हो जाएगा और सिर्फ कार्बन-12 बच जाएगा. जैव ईंधन से तैयार उत्पाद में अपेक्षाकृत ज्यादा मात्रा में कार्बन-14 होता है, वहीं शैल-रसायन से बने उत्पाद में कोई कार्बन-14 नहीं होता है। किसी सामग्री (ठोस या तरल) में मौजूद नवीकरणीय कार्बन की मात्रा उत्प्रेरक मास स्पेक्टोमीटर से मापी जा सकती है।[17][18]

जैव अवक्रमित और जैव आधारित सामग्री में एक महत्वपूर्ण अंतर होता है। उच्च घनत्व वाले पॉलीएथीलीन (एचडीपीई)[19] जैसे जैवप्लास्टिक 100 फीसदी जैव आधारित हो सकते हैं (100 नवीकरणीय कार्बन होता है), फिर भी वह गैर-जैवअवक्रमित होता है। इन सबके बावजूद एचडीपीई जैसे जैवप्लास्टिक ग्रीनहाउस की कमी करने में अहम भूमिका निभाता है, खासकर तब जब ऊर्जा उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। इन जैवप्लास्टिक के जैव आधारित घटकों को कार्बन तटस्थ माना जाता है क्योंकि उनका मूल जैव ईंधन से है।

एनेरोबिक - एएसटीएम डी5511-02 और एएसटीएम डी5526

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एएसटीएम डी5511-02 और एएसटीएम डी5526 परीक्षण के तरीके हैं जो आईएसओ डीआईएस 15985 जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन करते हैं।

इन्हें भी देखें

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  • आल्केन
  • अंगेवन्ते केमी (Angewandte Chemie)
  • जैविक ईंधन
  • जैवपॉलिमर
  • जैव-अवक्रमण प्लास्टिक
  • सेरेप्लास्ट इंक (Cereplast Inc)
  • इनजिओ
  • मिरेल
  • जैविक फोटोवोल्टाईक्स
  • सोलेजियर बायोप्लास्टिक्स इंक (Solegear Bioplastics Inc)

सन्दर्भ

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  1. "Development of a pea starch film with trigger biodegradation properties for agricultural applications". CORDIS services. 2008-11-30. मूल से 24 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-24.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 मार्च 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2011.
  3. http://www.prw.com/homePBP_NADetail_UP.aspx?ID_Site=818&ID_Article=24484&mode=1&curpage=0 Archived 2008-06-16 at the वेबैक मशीन Chris Smith, Braskem extends bioplastics range with LLDPE, PRW.com
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2011.
  5. "::: नोवामोंट :::". मूल से 14 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2011.
  6. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 21 मई 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 मई 2006.
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बाहरी कड़ियाँ

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